जीवन मै पीड़ा दूर करने के लिए श्रद्धा जरुरी
पिछले तीन सप्ताह से, जब से मैं भारत आया हूं, मैं अपने दिमाग में दो लक्ष्यों के साथ कई पवित्र और शक्तिशाली स्थानों का दौरा कर रहा हूं। दो लक्ष्यों में से मेरा पहला लक्ष्य मानव के आर्थिक कष्टों को कैसे दूर किया जाए इसका उपाय खोजना। क्योंकि मेरी नजर में यह एक ऐसी पीड़ा है जो हर व्यक्ति को प्रभावित करती है और ऐसा इसलिए है कि धन के कारण हर इंसान परेशान है। अगर आपके पास धन नहीं है या थोड़ा बहुत धन है अथवा बहुत सारा धन है इन तीनों परिस्थितियों मैं आप धन के कारण परेशान हैं। यह धन कर्म जो है वो सर्वव्यापी है।
धन कर्म संबंधी परेशानी दूर करने के लिए धन की देवी की सहायता ली जाय –
बहुत समय पहले मेरे द्वारा धन संबंधित पीड़ाओं को दूर करने के लिए ” श्रीम ब्रझी ” यह मंत्र रूपी विधि बताई गई थी तब मुझे स्वयं इस विषय में पूर्ण जानकारी नहीं थी ना ही पूरी प्रतिबद्धता, पर अब इन शक्ति शाली जगहों पर जाकर मुझे उस तकनीक को फिर से समझकर पुनः प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक ऊर्जा मिली है, इन प्रभावशाली स्थानों पर आकर मैं स्वयं में ऊर्जा और प्रकाश का संचार महसूस कर रहा हूं।
इस समय में यह संदेश मूकांबिका मंदिर से दे रहा हूं, जो की शक्ति स्वरूप प्रभावशाली मंदिर है। माना जाता है यहां की देवी के द्वारा एक ऐसे दानव का वध किया गया जो बहुत से लोगों को कष्ट पहुंचाता था। उन्हीं देवी के इस कृत्य से प्रेरणा पाकर मैं धन कर्म रूपी कष्ट को दूर करने के लिए प्रयासरत हूं।
धन से संबंधित कष्टों को दूर करने के अलावा मेरा दूसरा लक्ष्य शारीरिक कष्टों का समाधान करना है मुझे पूरा विश्वास है कि मैं बहुत जल्दी इन कष्टों को समाप्त करने वाले उपायों को खोज निकालूंगा, जिनके द्वारा लोग धन कर्म के साथ अन्य कष्टों से भी मुक्ति पा लें। जब तक मैं आपको कोई नया उपाय या श्रीम ब्रझी की कोई नई तकनीक नहीं सिखाता तब तक श्रीम ब्रझी के मंत्रोच्चार की पहले की तकनीक का उपयोग बनाएं रखें।
दत्तात्रेय ने समझाया श्रद्धा का महत्त्व
जब मैं अपने इन दोनों लक्ष्यों के बारे में सोच रहा था तब मैं दत्तात्रेय (जिनका अवतार मैंने नाडी पत्र के आधार पर कुछ समय के लिए स्वीकार किया था) का एक लेख पढ़ रहा था। जिसमें उन्होंने बताया था कि एक निश्चित दिन पर उन्होंने एक भक्त की आयु २० वर्षों के लिए बढ़ा दी थी साथ ही एक भक्त को निश्चित धनराशि भी दी।
हालांकि मैंने अपने दत्तात्रेय अवतार को अन्य अवतारों की तरह लंबे समय तक बनाए नहीं रखा पर जब भी ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है मैं इस अवतार के पास लौटता रहा हूं।
उन्होंने एक बात और कही है जो श्रद्धा आधारित है, बिना विश्वास के उसका आभास नहीं हो सकता। वो कहते हैं आप परमेश्वर को अपने भीतर, अपने मन में, अपने हृदय में जगह देकर सदैव के लिए उन्हें अपना बना सकते हैं, और अगर आप उन्हें अपने हृदय में बनाए रख सके तो आप के भीतर भी ईश्वर की तरह गुणों का समावेश हो जायेगा। और जब आप ऐसा करेंगे आप स्वयं ईश्वर हो जायेंगे अर्थात् स्वयं दत्तात्रेय। आप सभी मुझसे प्रेम करें, मेरे प्रति श्रद्धा रखें, मेरे विचारों को ग्रहण कर उनका पालन करें, मेरी कही बातों को समझकर उनका विश्लेषण करें और अपने जीवन में उन बातों का प्रयोग करें, मेरे प्रति समर्पित रहें।
प्रत्येक व्यक्ति का विश्वास है कि ईश्वर के प्रति आस्था, हृदय में विकसित श्रद्धा वो सब कुछ प्राप्त करवा सकती है जो हम प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन श्रद्धा और समर्पण आसान नहीं है
इसलिए समय समय पर मेरे द्वारा श्रद्धा के विकास हेतु कई संदेश उपलब्ध कराए गए हैं।
अगर आप वास्तव में अपने धन कर्म और शारीरिक कर्मों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो आपको अपने हृदय में श्रद्धा विकसित करनी पड़ेगी, जब हृदय में श्रद्धा जन्मेगी, आप शुभ विचारों के योग्य हो जायेंगे आपके योग्य होते ही विचार स्वतः ग्रहण हो जायेंगे, विचारों को ग्रहण करने से कर्म परिवर्तित होंगे, कर्मों के परिवर्तन से जीवन परिवर्तित हो जायेगा और उस परिवर्तन के बाद सभी प्रकार के दुःखों से मुक्ति मिल जाएगी। पूर्णता का आभास होगा, ऊर्जा का भंडार बढ़ता रहेगा, प्रकाश का संचार होता रहेगा। समर्पण के बाद प्रेम व त्याग की प्रतिमूर्ति आप स्वयं के भीतर ईश्वर के समान गुणों का समावेश पाएंगे।
इसलिए सहजता बनाएं, श्रद्धा रखें, समर्पण दिखाएं और अपने जीवन के प्रश्न चिह्नों से मुक्ति पाएं।
अंतिम लक्ष्य और ईश्वर के मस्तिष्क का मार्ग
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स्वर्ग में असीमित प्रणालियाँ हैं; इसे गिना नहीं जा सकता है, और वे सभी एक बहुत ही अलग समय अवधि का पालन करते हैं। मूल रूप से, एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कोई समय नहीं है। हम उसे हममें विकसित कर सकते हैं।
अपना ईश्वरीय मस्तिष्क कैसे विकसित करें?
Read Time: 3 Min बाइबिल में एक कहावत है, “ईश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया।” मैं उस कहावत में यह जोड़ना चाहूंगा कि भगवान ने मनुष्य मस्तिष्क को अपने मस्तिष्क के बाद बनाया। यह शाब्दिक रूप से सही है। शायद यह भौतिक मस्तिष्क न हो, बल्कि एक पारलौकिक मस्तिष्क हो, क्योंकि भगवान का कोई भौतिक रूप नहीं है। वह एक भौतिक रूप अधिग्रहण कर सकते हैं और सूक्ष्म रूप में या प्रकाश के रूप में रह सकते हैं। वह जो चाहे कर सकते हैं।
अपनी मनोकामना पूरी करने का आसान तरीका
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धन की देवी लक्ष्मी सदा मुस्कुराती रहती है। वह ऐसी किसी भी चीज को स्वीकार करने से इनकार कर देती है जिसमे खुशी नहीं है। वह हर चीज में सर्वश्रेष्ठ चाहती है। वह सर्वश्रेष्ठता का अवतार है।