वेदों के अनुसार दुनिया कैसे बनी?
हिंदुओं के प्राचीन धर्म ग्रंथ जिन्हें हम ‘वेद’ कहते हैं, यह उतने ही पुराने हैं जितना कि हमारा ब्रह्मांड। यह ईश्वर और ब्रह्मांड का मानव जाति के लिए उपहार है। ‘वेद’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान’ लेकिन सिर्फ ज्ञान शब्द ही वेदों को परिभाषित नहीं करता है।
‘वेद’ शब्द संस्कृत भाषा के विद् ज्ञाने धातु से बना है। इस तरह ‘वेद’ का शाब्दिक अर्थ ‘ज्ञान’ है। इसी धातु से ‘विदित’ (जाना हुआ), ‘विद्या’ (ज्ञान), ‘विद्वान’ (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। ‘वेद’ का मूल शब्द है जानना ,समझना, देखना, मन से परे देखना, बुद्धि से परे देखना, तर्क से परे देखना।
इस संदेश में, मैं वैदिक ऋषियों द्वारा जाग्रत चेतना के माध्यम से भौतिक अभौतिक वस्तुओं, मधुर संबंधों आदि के निर्माण की तकनीक के बारे में बात करने जा रहा हूं।
अपने विचारों को फलीभूत करना
आज मैं विचारों का फलीकरण अर्थात् किस तरह हमारे विचारों के आधार पर हमारे कर्म फलीभूत होते हैं इस विषय पर बात करूंगा। आपने कुछ सोचा,और उस पर विचार किया, अब हमारे विचार के माध्यम से हमारे कर्म परिवर्तित होंगे अर्थात् जिस तरह का हमने विचार किया हमारे कर्म उसी दिशा में अग्रसर होंगे। अगर आप मेरी शिक्षाओं को देखेंगे तो पाएंगे कि मेरी ९५% शिक्षाएं विचारों के फलीकरण से संबंधित हैं। विचारों की श्रेष्ठ शक्ति होने के बाद भी हमने कड़ी मेहनत करना, पसीना बहाना, और हारना चुना है। अब हमारा वेदों की ओर जाने का समय आ चुका है, ताकि हम वेदों को आधार मानकर वेदों और कर्मों का आपसी संबंध समझ सकें। विचारों और कर्मों का फलीकरण समझ सकें।
‘वेद’ सृष्टि के विषय में क्या कहते हैं ?
भगवान के पास सिर्फ शब्द था अर्थात् सृष्टि का विचार था। उसने पहले विचार किया फिर सब कुछ बनाया। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा बाइबल में बताया गया है। अब आप चाहे बाइबल के प्रमाण से समझें या वेदों के प्रमाण से। सृष्टि की रचना ईश्वर का विचार थी और आज यह ब्रह्मांड उसी विचार का फलीकरण है।
यीशु अपने जाने से पहले कहते थे आप चिंता न करें मैं जाने के बाद आपके लिए एक होली स्पीरिट भेजूंगा, जो आपको, आपके बेहतर स्वरूप तक पहुंचाने में मदद करेगी। आपको इतनी मेहनत और पसीना बहाने की जरूरत नहीं पड़ेगी जैसा कि आप अभी कर रहे हैं।
कड़ी मेहनत और विचारों के फलीकरण में बहुत अंतर है। विचारों द्वारा फल प्राप्त करना श्रेष्ठ है, सर्वोच्च है और आसान भी। इसे हर कोई कर सकता है, बस कुछ मंत्रों को और अनुष्ठानों को समझना है और करना है। अलग से कुछ और करने की आवश्यकता नहीं है। अनुष्ठानों में हवन सबसे महत्वपूर्ण है। परमात्मा की मदद से विचारों को फलप्रद बनाना सबसे महत्वपूर्ण है और यही सबसे आसान तरीका है।
हमने जान बूझकर अपने जीवन को बहुत ही दयनीय बना दिया है। अब आप वेदों की तरफ जाइए आपको उत्तर मिल जायेगा। अब मैं आपको बताऊंगा की यह तकनीक काम कैसे करेगी क्योंकि बुद्धि को तो संतुष्ट करना पड़ेगा। जैसा कि मैंने बताया सृष्टि की शुरुवात विचार से ही हुई। अब यदि आप कोई विचार ही नहीं करेंगे तो उसका फलीकरण होगा कैसे?
सबसे पहले आपको विचार करना होगा सोचना होगा, मन में विचारों को लाना होगा। विचार मनोवैज्ञानिक ऊर्जा है उसी ऊर्जा से शुरुवात होगी और अंत में फलीकरण तक ऊर्जा बनाए रखनी होगी।
मनोवज्ञैानिक ऊर्जा, जिसमें एक ‘शब्द’ होता है। और शब्द एक रूप बन जाता है, एक त्रि-आयामी या 3d रूप। इसे ‘नाम रूप’ कहते हैं। ‘नाम’ का अर्थ है नाम, वस्तु का नाम जो एक मनोवैज्ञानिक घटक है। और फिर वह त्रि -आयामी स्थिति में ‘रूप’ बन जाता है। एक, एक आयामी है, दूसरा बहु-आयामी या त्रि-आयामी है। तो, अगर आपको लगता है कि आपने पहले ही मन के स्तर पर निर्माण कर लिया है। फिर इसे त्रि-आयामी वस्तु में अनुवाद करना आसान होगा। विचार और वस्तु के बीच के सबंध को जानने, समझने, और अनभुव करने से ही आपका कोई भी विचार फलीकृत होता है। और यदि हम विचार करने वाले व्यक्ति जिसे ज्ञाता कहा जाता है और वह ज्ञात है, जब हम इनके बीच के सबंध को समझते हैं, तो हम पाएँगे कि जानने वाला, जानने की प्रक्रिया और जानने वाली वस्तु सब कुछ एक ही है, सब कुछ एक फलीकरण ही है। पतंजलि का मार्ग भी इसी सन्देश में छुपा है। इसलिए यदि आप इसके बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो आपको उस तकनीक को जानने की जरूरत है जिसकी मैंने अपने दो बेहद सफल कार्यक्रमों में व्यापक रूप से चर्चा की है जो आपके लिए पिल्लई सेंटर वेबसाइट के सदाबहार खंड में उपलब्ध हैं। यह दो कार्यक्रम हैं ‘मिलियनेयर योग’ और ‘मिडब्रेन मिरेकल’ विधि।
वे दोनों ‘थॉट मनिैनिफेस्टेशन’ के बारे में विस्तार से बात करते हैं। और तब तुम समझ जाओगे कि एक बार जब आप इस विचार का उपयोग करके सपने पुरे करने हैं, तो आप वैदिक ऋषियों के प्रतिभाशाली मस्तिष्क को समझने लगे हैं।
विचारों और कर्मों के फलीकरण की प्रक्रिया वैदिक ज्ञान की जानकारी के बाद और आसान लगती है, ब्रह्मांड की संपूर्ण संरचना से लेकर यहां विद्यमान हर वस्तु अपने आप में एक सकारात्मक ऊर्जा लिए हुए है। बस जरूरत है उसे सही दिशा में ले जाने की।
ईश्वर सदा आपके सहायी रहें।सपने पुरे करने
अंतिम लक्ष्य और ईश्वर के मस्तिष्क का मार्ग
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स्वर्ग में असीमित प्रणालियाँ हैं; इसे गिना नहीं जा सकता है, और वे सभी एक बहुत ही अलग समय अवधि का पालन करते हैं। मूल रूप से, एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कोई समय नहीं है। हम उसे हममें विकसित कर सकते हैं।
अपना ईश्वरीय मस्तिष्क कैसे विकसित करें?
Read Time: 3 Min बाइबिल में एक कहावत है, “ईश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया।” मैं उस कहावत में यह जोड़ना चाहूंगा कि भगवान ने मनुष्य मस्तिष्क को अपने मस्तिष्क के बाद बनाया। यह शाब्दिक रूप से सही है। शायद यह भौतिक मस्तिष्क न हो, बल्कि एक पारलौकिक मस्तिष्क हो, क्योंकि भगवान का कोई भौतिक रूप नहीं है। वह एक भौतिक रूप अधिग्रहण कर सकते हैं और सूक्ष्म रूप में या प्रकाश के रूप में रह सकते हैं। वह जो चाहे कर सकते हैं।
अपनी मनोकामना पूरी करने का आसान तरीका
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धन की देवी लक्ष्मी सदा मुस्कुराती रहती है। वह ऐसी किसी भी चीज को स्वीकार करने से इनकार कर देती है जिसमे खुशी नहीं है। वह हर चीज में सर्वश्रेष्ठ चाहती है। वह सर्वश्रेष्ठता का अवतार है।