जाने दो तरीके आत्मज्ञान पाने के
आत्मज्ञान आपके उच्चतम स्वरूप के ज्ञान, के अनुभव को कहा जाता है। आपका उच्च रूप मनोवैज्ञानिक रूप से निर्मित अवधारणा नहीं है कि आप कौन हैं ?
‘आत्मज्ञान’ का अर्थ ‘अहम की चेतना’ या ‘मन की चेतना’ के परे जाना है। मैं रूपी चेतना से पर जाने के लिए आपको ‘मेरा’ रूपी अर्थात् ‘ममत्व’ भाव और मन की चेतना से परे जाना होगा । एक बार आप इन चीजों से बाहर निकल गए तो स्वयं को विचारों से मुक्त महसूस करेंगे। लेकिन यह अभी भी पूर्ण ‘आत्म ज्ञान’ नहीं है। लेकिन आत्म ज्ञान है क्या? यह जानने के लिए अपने आपको विचार मुक्त महसूस करना पहला कदम है। अगर आप विचार मुक्त महसूस कर रहे हैं तो आप पहले कदम पर पहुंच चुके हैं । आत्म ज्ञान के अंतिम चरण में आप शरीर सहित प्रकाश में परिवर्तित हो जाते हैं और ऐसा तब होता है जब सब कुछ समाप्त हो जाता है तब आप प्रकाश के साथ एक हो जाते हैं।
आपको आत्म ज्ञान के बारे में कोई कठिन शास्त्र या विज्ञान पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। मैं आपको दो चरणों में यह तकनीक देने जा रहा हूं, जो कहना आसान है और शायद करना भी बशर्ते इसे जटिल न करें।
इस प्रक्रिया को करने के लिए आपको किसी तरह के ईश्वर पर विश्वास करने की भी आवश्यकता नहीं है।
पहली तकनीक – आंतरिक मौन
पहला कदम मौन रहकर चुप रहना है। आंखें बंद करें और मन मस्तिष्क के विचारों को शांत करें। बात करना दो तरह का होता है । एक जब हम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसी व्यक्ति विशेष से बात कर रहे हैं, दूसरा हम व्यक्तिगत रूप से भीतर ही भीतर बोलते हैं । ये भीतर ही भीतर बोलना सबसे बुरा है। हमें बेवजह नहीं बोलना चाहिए। अपनी वाणी को काटिए अर्थात् बोलना कम कीजिए।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने अंदर के शोर जो कि मन के अनावश्यक विचार है, उन्हें रोकें।
और आप वह कैसे कर सकते हैं? अब मुंह की गुहा पर ध्यान दें और जीभ को स्थिर रखें। अगर कोई विचार मस्तिष्क में आने की कोशिश करता है, तो विचार को अनुमति दें, लेकिन अगले को आने से रोक दें। आपको इस प्रक्रिया से चिढने या अन्य कुछ भी करने की आवश्यकता नही है। बस इसी पुराने विचार को गति न देते हुए उसी के साथ रहें, सिर्फ एक विचार।
वैकल्पिक रूप से, आप ‘ओम’ या ‘जीसस’ या ‘अल्लाह’ का नाम लेकर नासिका के अंदर जाने वाली अपनी श्वास का निरीक्षण करें और विचारों से छुटकारा पाएं और मौन रहें। अब आप अपनी आँखें खोल सकते हैं।
जान लें कि आत्मज्ञान का ध्यान एक कठिन अभ्यास नहीं है। यह शुरुआत में कठिन प्रतीत होता है, लेकिन बाद में जब आप ध्यान केंद्रित करते रहते हैं और तब आप कुछ भी नहीं करना चाहते हैं। आप अन्य लोगों से बात नहीं करना चाहते। तब आप क्या कर रहे होंगे? आप परमात्मा से वार्तालाप कर रहे होंगे या यह सिर्फ परमानंद होगा और आप इस परमानंद को हर कोशिका में महसूस कर सकेंगे। यह परमानंद जो आपसे अब कभी दूर नहीं हो सकता, आप उस परमानंद की तुलना किसी भी चीज से नहीं कर सकते। और इस अवस्था में होने का क्या फायदा है? यह ध्यान आपको सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ बना देगा।
यह सर्वश्रेष्ठ तथा सत्य अवस्था है जिसे योग कहा जाता है, योग या अपने असली स्वरूप (सेल्फ) से मिलन की तरह भी समझा जा सकता है। बाद में जब आप परमात्मा के मार्ग पर चलेंगे तो परमात्मा, आपका मार्गदर्शन करेगा और आपकी सारी चेतना, या कॉन्शियसनेस – जैसे मानसिक चेतना (माइंड कॉन्शियसनेस), संज्ञानात्मक चेतना (कॉग्निटिव कॉन्शियसनेस), दृष्टि चेतना (विज़न कॉन्शियसनेस), अनुभव चेतना (सेंसरी कॉन्शियसनेस), श्रवण चेतना (हियरिंग कॉन्शियसनेस), स्पर्श चेतना (टच कॉन्शियसनेस) इन सभी को वापस खींचा जा सकता है तब आप वहाँ नहीं होंगे। जब आपकी चेतना को हटा दिया जाता है तब आप गैर-स्थानीय या नॉन लोकल हो जाते हैं। जो मैंने कहा था कि ये एक मनोवैज्ञानिक या शारीरिक अनुभव से परे है जो शरीर को प्रकाश में बदल देता है और यह ज्ञान का उच्चतम स्तर है।
दूसरी तकनीक – दूसरे में स्वयं को देखना
अब दूसरी प्रक्रिया, वह है अपने ‘आई’ कॉन्शियसनेस या ‘माइन कॉन्शियसनेस’ को दूर करने की है। ‘माइन’ या ममत्वभाव, ‘आई’ या अहंकार से ज़्यादा बुरा होता है। अहंकार सूक्ष्म होता है। तो यह प्रक्रिया कैसे करते हैं? बस आपको हर किसी को, हर व्यक्ति को, हर वस्तु के रूप में स्वयं को देखना है। बस हर किसी को ऐसे समझो जैसे कि मेरा नहीं बल्कि मैं ही हूँ। और फिर अगर आप इसे करने का नाटक भी करते हैं तो भी ठीक है। तो भी यह प्रक्रिया काम करेगी।
ईश्वर चाहता था कि मैं आप को इन प्रक्रियाओं से अवगत कराऊँ। ईश्वर करुणावान है। अब आप इसे कैसे करेंगे? पहली तकनीक अंदर और बाहर के शोर या बेमतलब के विचार और बेमतलब की वाणी को रोकने में आपको समर्थ बनाएगी। आप जानते हैं कि आप किससे बात कर रहे हैं, इसके प्रति सचेत हो जाएं कि आप ठीक कर रहे हैं या आप अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। यह इस तकनीक का हिस्सा होगा। ईश्वर का आशीर्वाद आप पर बना रहे।
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